
बांदा। 28 जुलाई की शाम को जो शुरू हुआ, वह सिर्फ एक महिला की गिरफ्तारी की कहानी नहीं है — यह उस डरावने सच का दस्तावेज़ है, जिसमें सत्ता संरक्षित तंत्र का इस्तेमाल विपक्ष की आवाज़ें कुचलने में किया जा रहा है।
जनता दल यूनाइटेड की प्रदेश उपाध्यक्ष और बुंदेलखंड प्रभारी शालिनी सिंह पटेल ने एक गंभीर प्रेस वक्तव्य में खुलासा किया है कि किस तरह उन्हें और उनके परिवार को एक सुव्यवस्थित साज़िश के तहत निशाना बनाया गया।
पुलिस थी, वर्दी नहीं थी; गाड़ियाँ थीं, नंबर नहीं था
28 जुलाई की शाम से ही JDU के क्षेत्रीय कार्यालय के बाहर भारी पुलिस बल की तैनाती की गई। दो गाड़ियाँ थीं—बिना नंबर की। और कुछ लोग थे—बिना वर्दी के, मगर खुद को पुलिसकर्मी कहने वाले। माहौल में भय था, और उद्देश्य अस्पष्ट।
शालिनी पटेल ने 112 पर कॉल कर इस उपस्थिति की जानकारी दी। लेकिन जैसे यह जानकारी देना ही उनके लिए अपराध बन गया।
रात की चुप्पी में जो हुआ, वह लोकतंत्र की आत्मा को डरा सकता है
28 और 29 की दरम्यानी रात लगभग 1 बजे, करीब दो दर्जन पुलिसकर्मी जबरन उनके घर में घुस आए। घर के भीतर मौजूद परिजनों को अपमानित किया गया, मोबाइल छीने गए, वीडियो-फोटो डिलीट कराए गए, और CCTV का DVR उखाड़कर साक्ष्य मिटा दिए गए।
अलमारी से नकदी, गहने और कागजात ले जाए गए। JDU कार्यालय में भी तोड़फोड़ हुई। उनकी गाड़ी को जब्त कर लिया गया—जिसमें राजनीतिक दस्तावेज़ और निजी सामान थे।
“रातभर घुमाया गया, कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं”
शालिनी पटेल का आरोप है कि उन्हें और उनके साथियों को अवैध हिरासत में लेकर मध्य प्रदेश की पहाड़ियों में रातभर घुमाया गया। इस बीच कोई दस्तावेज, कोई FIR, कोई वैधानिक प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
और फिर… एक रिक्शा चालक की कहानी सामने लाई गई
29 जुलाई को एक स्थानीय रिक्शा चालक की तहरीर के आधार पर शालिनी पटेल पर SC/ST एक्ट के तहत रंगदारी मांगने और रुपये लेने का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया।
“जिस व्यक्ति की खुद की गाड़ी किस्तों में चल रही हो, और जो दस रुपये की सवारी के लिए घंटों इंतजार करता हो—वह पाँच लाख रुपये कहाँ से लाया? और कब उसकी पत्नी ने पैसे दे दिए, यह उसे कब पता चला?” — शालिनी पटेल का सवाल आज हर जागरूक नागरिक को झकझोरता है।
क्या यह सिर्फ एक नेता का उत्पीड़न है, या OBC समाज और महिला नेतृत्व का दमन?
पटेल का आरोप है कि यह सब कुछ उनके राजनीतिक विरोधियों के इशारे पर किया गया, जो लंबे समय से OBC समाज, किसानों और महिला नेतृत्व से असहज हैं। यह प्रकरण सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, एक विचारधारा को कुचलने की कोशिश है।
लोकतंत्र के लिए यह एक चेतावनी है
जब सत्ता पक्ष से असहमति रखने वाला व्यक्ति—खासकर एक महिला, जो ग्रामीण और पिछड़े समाज की आवाज़ हो—ऐसे तरीके से निशाना बनाया जाए, तो सवाल सिर्फ उस व्यक्ति की सुरक्षा का नहीं होता। सवाल देश के लोकतांत्रिक चरित्र का होता है।
क्या ऐसे मामलों में पुलिस स्वतः सक्रिय हो जाती है? क्या विरोध की राजनीतिक ज़मीन को पुलिसिया ज़मीन में बदलने का काम शुरू हो चुका है?
शालिनी सिंह पटेल अब जमानत पर बाहर हैं, लेकिन उनके सवाल अब भी बंद दरवाज़ों पर दस्तक दे रहे हैं।




